संखारगढ़, जो मध्य प्रदेश के एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, एक समय बौद्ध धर्म के प्रसार और विकास का प्रमुख केंद्र था। यहां से प्राप्त बौद्धकालीन मूर्तियां और अन्य कलात्मक अवशेष इस क्षेत्र के प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाते हैं। विशेष रूप से, ये मूर्तियां बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं से संबंधित हैं, जो यहां के धार्मिक इतिहास में गहरी छाप छोड़ती हैं।
संखारगढ़ की पहाड़ियों में छुपी हुई बौद्धकालीन मूर्तियां, जो एक समय बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के केंद्र के रूप में कार्य करती थीं, आज भी अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के कारण चर्चाओं में हैं। इन मूर्तियों में प्रमुख रूप से बुद्ध के विभिन्न रूपों की झलक मिलती है। इनमें से कुछ मूर्तियां पूर्ण रूप से बौद्ध धर्म से जुड़ी हुई हैं, जबकि कुछ मूर्तियों को बाद में हिन्दू धर्म के अनुकूल बना दिया गया। इस प्रक्रिया में इन मूर्तियों की मूल बौद्ध पहचान को मिटाने की कोशिश की गई है, जो कि एक तरह से सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को दबाने की साजिश प्रतीत होती है।
संखारगढ़ का ऐतिहासिक महत्व इस तथ्य में भी निहित है कि यह स्थान प्राचीन बौद्ध स्तूपों के प्रचार-प्रसार का केंद्र रहा है। यहां स्थित प्राचीन स्तूप और बौद्ध धर्म से संबंधित अन्य संरचनाएं यह सिद्ध करती हैं कि इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म का प्रभाव बहुत गहरा था। विशेष रूप से भरहुत स्तूप का उल्लेख किया जाता है, जो बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल था। यहां से प्राप्त मूर्तियां इस तथ्य की पुष्टि करती हैं कि यह क्षेत्र न केवल बौद्ध धर्म के धार्मिक केंद्र के रूप में महत्वपूर्ण था, बल्कि यहां के कला और स्थापत्य ने भी बौद्ध धर्म के विचारों को फैलाने में योगदान दिया था।
संखारगढ़ में पाए जाने वाले सिकंदराएं (गुफाएं) व मूर्तियां और अन्य कलाकृतियां हैं हालांकि, यह भी देखा जा रहा है कि आजकल इन मूर्तियों को दबाने और बदलने की साजिश की जा रही है। हिन्दू आस्था केन्द्रों में इन मूर्तियों को पूजा जाता है, लेकिन इनकी बौद्ध पहचान को गायब कर दिया जाता है। यह एक गंभीर मुद्दा है, जो न केवल धार्मिक विविधता को खतरे में डालता है, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को भी क्षति पहुंचाता है।
ऐसा लगता है कि यह एक योजनाबद्ध प्रयास है, जिसमें बौद्ध धर्म की महानता को दबाया जा रहा है और इसे हिन्दू धर्म के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। यह न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी चिंताजनक है।
जब किसी संस्कृति या धर्म को उसकी सही पहचान से वंचित कर दिया जाता है, तो यह उस संस्कृति के अस्तित्व को खतरे में डालता है। बौद्धकालीन मूर्तियों का विलुप्त होने का खतरा इसे लेकर समाज में गंभीर सवाल खड़े करता है।
संखारगढ़ में स्थित इन प्राचीन मूर्तियों और अवशेषों की रक्षा करना न केवल ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह बौद्ध धर्म के महान योगदान को सही रूप से समझने और सम्मानित करने के लिए भी आवश्यक है। यदि इन मूर्तियों को बचाया जाता है और इनके असली रूप को संरक्षित किया जाता है, तो यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य धरोहर साबित हो सकती है।
संक्षेप में, संखारगढ़ में बौद्धकालीन मूर्तियों की धरोहर केवल एक धार्मिक या सांस्कृतिक धरोहर नहीं है, बल्कि यह हमारे इतिहास और सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक भी है। हमें इस धरोहर को बचाने की दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि हम अपने इतिहास और संस्कृति को संजोकर रख सकें और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सशक्त और समृद्ध धरोहर छोड़ सकें।